जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव से इस संबंध में हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह जानने की मांग की है कि क्या विभिन्न रैंकों के राज्य अधिकारियों के नाम के साथ "माननीय" का उपयोग किसी आधिकारिक प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है या यह एक प्रथा के रूप में ही चल रहा है।
इस मामले की जड़ में कृष्ण गोपाल राठौर द्वारा दायर रिट याचिका है, जिसमें इटावा के कलेक्टर द्वारा आधिकारिक पत्र में कानपुर के संभागीय आयुक्त को "माननीय आयुक्त" कहकर संबोधित करने का मुद्दा उठाया गया था। इस संदर्भ में अदालत ने देखा कि सरकारी पत्राचार में अधिकारियों के नामों के साथ "माननीय" का नियमित उपयोग हो रहा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसका कोई विधिवत प्रोटोकॉल मौजूद है या नहीं।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि "माननीय" शब्द का उपयोग माननीय मंत्रियों और अन्य उच्च पदाधिकारियों के लिए उपयुक्त है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकार के सचिवों के लिए इसका प्रयोग सही है या नहीं। कोर्ट ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि इस मुद्दे पर सरकार से स्पष्टीकरण लिया जाना आवश्यक है, ताकि सरकारी पत्राचार में उचित प्रोटोकॉल का पालन हो सके।
न्यायालय ने इस प्रकरण में हलफनामा मांगते हुए मामले की अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को निर्धारित की है।
यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले आदरणीय शीर्षकों को लेकर स्पष्टता की आवश्यकता है, ताकि सरकारी पत्राचार और सम्बोधन में अनुशासन और सम्मान बनाए रखा जा सके।
केस टाइटल: कृष्ण गोपाल राठौर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
यह निर्णय इस बात पर प्रकाश डालता है कि सरकारी अधिकारियों के पदनामों के साथ "माननीय" जैसे उपसर्गों का उपयोग कैसे और किस प्रकार के अधिकारियों के लिए उचित है, इस पर उचित दिशा-निर्देश और मानक स्थापित किए जाने चाहिए।