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गंगा में नाव-बोट टकराने के मामले में आरोपी को मिली अग्रिम जमानत

वाराणसी @उड़ान इंडिया: वाराणसी में न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री संजीव पाण्डेय ने बहुचर्चित गंगा में नाव-बोट टकराने के मामले के आरोपी गोपाल सहनी को अग्रिम जमानत प्रदान करने का आदेश दिया है। यह आदेश धारा 282, 284, 109 बी.एन.एस. के मामलों में दिया गया। इस मामले में गोपाल सहनी को अपनी नाव के चालक द्वारा लापरवाही से नाव चलाने के कारण दुर्घटना का आरोपी माना गया था, हालांकि अभियुक्त ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सैयद शावेज़ फिरोज़ व अधिवक्ता विकास कुमार ने पक्ष रखा।

मामले का विवरणः प्रभारी निरीक्षक जल पुलिस सधुवन राम गौतम द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, दशाश्वमेध घाट पर दो नावों के आपस में टकराने के बाद बड़ी नाव में सवार 58 व्यक्तियों की जान जोखिम में थी, और छोटी नाव पलट गई थी। जल पुलिस और एनडीआरएफ की मदद से सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाला गया। इस दुर्घटना के बाद, गोपाल सहनी को नाव का मालिक होने के कारण आरोपी बनाया गया था, हालांकि दुर्घटना के समय वह नाव पर मौजूद नहीं था। विद्वान जिला शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी ने उक्त अग्रिम जमानत प्रार्थना-पत्रों का प्रबल विरोध करते हुए अग्रिम जमानत प्रार्थना-पत्र निरस्त किये जाने की याचना की गयी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता का तर्क:

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सैयद शावेज़ फिरोज़ व अधिवक्ता विकास कुमार ने अदालत में यह तर्क प्रस्तुत किया कि उनकी मुवक्किल गोपाल सहनी पर लगे आरोप पूरी तरह से असंगत और बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि गोपाल सहनी केवल छोटी नाव का मालिक है और घटना के समय वह घटनास्थल पर मौजूद नहीं था। अधिवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता की नाव मानकों के अनुसार पंजीकृत और लाइसेंस प्राप्त थी, और उसका संचालन पूरी तरह से कानूनी था। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि दुर्घटना दो नावों के आपस में टकराने के कारण हुई थी, और इसमें कोई भी लापरवाही याचिकाकर्ता की तरफ से नहीं की गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि घटना में कोई भी यात्री घायल नहीं हुआ और न ही किसी यात्री ने कोई शिकायत की है। यह घटना एक दुर्घटना थी, और याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी आपराधिक इरादा साबित नहीं होता है।

अधिवक्ता की प्रमुख दलीलें:

  1. याचिकाकर्ता का दोषी नहीं होना: गोपाल सहनी की नाव पर किसी यात्री को कोई चोट नहीं आई है और न ही कोई शिकायत दर्ज की गई है।
  2. दुर्घटना का प्राकृतिक कारण: दुर्घटना के समय नाव के चालक ने कोई लापरवाही नहीं की थी, और यह घटना एक दुर्घटना थी।
  3. पूर्व आपराधिक इतिहास का अभाव: याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और वह एक ईमानदार व्यक्ति है।
  4. निर्दोष होने का दावा: याचिकाकर्ता ने यह स्पष्ट किया कि वह निर्दोष है और उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए, ताकि वह न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग कर सके।

अदालत का निर्णय: अधिवक्ता के तर्कों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत प्रदान करने का आदेश दिया। न्यायालय ने यह माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं हैं और यह मामला एक दुर्घटना के कारण हुआ था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को ₹50,000 का व्यक्तिगत बंधपत्र और उतनी ही राशि के दो प्रतिभूति देने पर जमानत पर छोड़ा जाएगा। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को कुछ शर्तों के साथ जमानत दी गई, जैसे कि वह पुलिस अधिकारियों के समक्ष पूछताछ के लिए प्रस्तुत होगा और भारत छोड़ने से पहले न्यायालय की अनुमति प्राप्त करेगा।

न्यायालय के आदेश के बाद, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इस फैसले को न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि यह आदेश याचिकाकर्ता के अधिकारों की रक्षा करता है।