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बड़ी खबर: हाईकोर्ट की लिफ्ट में महिला वकील पर छेड़छाड़ का आरोप, पुलिस ने दर्ज किया मामला

लॉ लाइव@उड़ान इंडिया: कलकत्ता हाईकोर्ट की एक महिला वकील ने सोमवार सुबह कोलकट्ता हाईकोर्ट की लिफ्ट में एक पुरुष क्लर्क पर छेड़छाड़ का गंभीर आरोप लगाया है। यह घटना कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को फिर से सामने ला रही है। वकील के अनुसार, आरोपी क्लर्क ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जब वह लिफ्ट में अकेली थीं।

महिला वकील ने अपनी शिकायत में बताया कि जब वह लिफ्ट में थीं, तो क्लर्क ने उनके साथ शारीरिक रूप से छेड़छाड़ की। यह घटना तब हुई जब वह किसी काम से लिफ्ट का उपयोग कर रही थीं और वहां केवल वे दोनों ही थे। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि यह पहली बार नहीं था, जब आरोपी ने उनके साथ ऐसा किया था। उन्होंने कहा कि आरोपी क्लर्क ने पहले भी उनके साथ छेड़छाड़ की थी और उन्हें अपने मामलों में लाभ पहुंचाने का वादा किया था।

इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला वकील ने अपनी आपबीती अपने सहकर्मियों को बताई, जिन्होंने तत्परता से आरोपी का सामना किया। सहकर्मियों की यह सक्रियता और समर्थन एक सकारात्मक संकेत है, जो दर्शाता है कि कार्यस्थल पर ऐसी घटनाओं के खिलाफ एकजुटता महत्वपूर्ण है। इसके बाद, महिला ने स्थानीय पुलिस स्टेशन में जाकर आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपी क्लर्क ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न की घटनाएँ की हैं।

पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धाराओं के तहत मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने घटना की गंभीरता को देखते हुए सभी पहलुओं की गहनता से जांच करने का आश्वासन दिया है। इस घटना के संबंध में, महिला वकील ने कहा कि वह अपनी आवाज उठाने में संकोच नहीं करेंगी, और उन्होंने इस मामले को उजागर करने का साहस दिखाया है।

महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं ने समाज में गहरी चिंता पैदा कर दी है। पिछले वर्ष कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम (POSH Act) के प्रावधानों को हाईकोर्ट परिसर में लागू करने की मांग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने उस याचिका को समय से पहले दायर किया हुआ बताया और कहा कि याचिकाकर्ता ने कोई पर्याप्त अभ्यावेदन नहीं किया था।

चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस हिरणमय की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कोई अभ्यावेदन प्रस्तुत नहीं किया, जो इस मामले को सही ठहरा सके। उन्होंने कहा कि रिट याचिका केवल तभी स्वीकार की जा सकती है जब अधिकारियों की निष्क्रियता साबित हो। यह दृष्टिकोण कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों की गंभीरता को कम करता है और इसे रोकने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता को उजागर करता है।

महिला वकील का यह आरोप एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जो कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों को उजागर करता है। यह घटना न केवल कलकत्ता हाईकोर्ट, बल्कि समस्त न्यायिक प्रणाली में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को इंगित करती है।

इस मामले में पुलिस और अदालतों की जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करें। कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है, ताकि वे अपने काम के प्रति न केवल सुरक्षित, बल्कि आत्मविश्वास से भी कार्य कर सकें।



महिला वकील ने courage दिखाते हुए इस मामले को उजागर किया है, जिससे अन्य महिलाओं को भी अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरणा मिलेगी। समाज में इस तरह की घटनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि यौन उत्पीड़न केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक मुद्दा है, जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। सभी कार्यस्थलों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके पास प्रभावी नीतियाँ और तंत्र हों, ताकि महिलाएं अपने कार्यस्थलों पर सुरक्षित और सशक्त महसूस कर सकें।

इस घटना की विस्तृत जांच की जा रही है और सभी पक्षों की राय ली जाएगी। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो यह दर्शाता है कि कानून और न्याय प्रणाली महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को बर्दाश्त नहीं करेगी। इस तरह की घटनाएँ न केवल पीड़िता के लिए, बल्कि समाज के लिए भी शर्मनाक होती हैं, और इसके खिलाफ सभी को एकजुट होकर खड़ा होना होगा।