Flickr Images

खांसी पर नहीं हो रहा किसी भी सिरप या दवा का असर, ये वायरस हो सकता है कारण! घबराइए नहीं, ICMR की इस सलाह पर करें अमल

नई दिल्ली@उड़ान इंडिया: देश में इस समय खांसी के ऐसे मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, जो किसी कफ सिरप या साधारण एंटीबायोटिक्स दवा से ठीक नहीं हो रहे हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने देश भर में बुखार और खांसी के तेजी से बढ़ते मामलों के लिए एक प्रमुख कारण ‘इन्फ्लुएंजा ए सबटाइप H3N2’ वायरस (Influenza A subtype H3N2) को बताया है. ICMR के मुताबिक ये वायरस H3N2 वायरस का एक उपप्रकार है. जिससे फ्लू फैल रहा है. दूसरे इन्फ्लूएंजा वायरसों की तुलना में इससे संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत ज्यादा पड़ रही है.
                               इन्फ्लुएंजा ए सबटाइप एच3एन2′ से से सुरक्षित रहने के लिए आईसीएमआर ने लोगों को नियमित रूप से हाथ धोने और सार्वजनिक जगहों पर थूकने से बचने सहित कई उपाय सुझाए हैं. अगर रोग के लक्षण हैं, तो मास्क पहनें और भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचें, छींकते और खांसते समय मुंह और नाक को ढकें, खूब तरल पदार्थ लें, आंखों और नाक को छूने से बचें और बुखार और शरीर में दर्द के लिए पैरासिटामोल लें. इसके साथ ही बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक्स या अन्य दवाएं लेने से बचने की सलाह भी दी गई है. डॉ. डैंग लैब के सीईओ डॉ. अर्जुन डैंग के मुताबिक एच1एन1 की तुलना में एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के मामले इस समय ज्यादा सामने आ रहे हैं. पिछले कुछ हफ्तों में हमने करीब 100 से ज्यादा टेस्ट किए हैं. जिनमें से बहुत से H3N2 पॉजिटिव हैं. यह देखना दिलचस्प है कि H1N1 पॉजिटिव लोग कम पाए जा रहे हैं.
                               दूसरी ओर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association-IMA) ने देश भर में खांसी, सर्दी और मतली के बढ़ते मामलों के बीच एंटीबायोटिक्स (antibiotics) दवाओं के अंधाधुंध उपयोग से बचने की सलाह दी है.आईएमए की एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस के लिए स्थायी समिति ने कहा कि इस वायरस से बुखार तीन दिनों के अंत में चला जाता है लेकिन खांसी तीन सप्ताह तक बनी रह सकती है. वायु प्रदूषण के कारण वायरल बुखार और खांसी के मामले बढ़े हैं. आईएमए ने कहा कि पहले ही कोविड-19 महामारी के दौरान एजिथ्रोमाइसिन और इवरमेक्टिन का बहुत उपयोग देखा गया और इससे भी प्रतिरोध विकसित हुआ है. एंटीबायोटिक्स देने से पहले यह पता लगाना जरूरी है कि संक्रमण बैक्टीरिया का है या नहीं.