🖋 सैयद शावेज़ फ़िरोज़ ‘बन्टी’
ब्यूरो डेस्क@उड़ान इंडिया: उपासना स्थल कानून (Places of Worship Act) भारत में एक महत्वपूर्ण कानून है जिसे 1991 में लागू किया गया था। यह कानून धार्मिक स्थलों के स्वरूप को संरक्षित रखने के उद्देश्य से लाया गया था, खासकर उन जगहों पर जो देश की स्वतंत्रता से पहले मौजूद थीं।
मुख्य प्रावधान: धार्मिक स्थलों की स्थिति को संरक्षित रखना: इस कानून के तहत, धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के पहले वाले रूप में संरक्षित रखा गया है। इसका मतलब है कि उस दिन जो भी धार्मिक स्थल था, उसकी स्थिति वैसी ही बनी रहेगी और उसे बदलने की अनुमति नहीं होगी।
सभी धर्मों के प्रति समानता: इस कानून का उद्देश्य सभी धर्मों के प्रति समानता को सुनिश्चित करना है, ताकि कोई भी धार्मिक स्थल किसी भी धर्म के अनुयायी द्वारा बदलने की कोशिश न कर सके। यह विधेयक विवादित धार्मिक स्थलों को धार्मिक, ऐतिहासिक, या सांस्कृतिक महत्व के आधार पर संरक्षित करने का प्रयास करता है।
संविधान के अनुच्छेद 25 का पालन: यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का पालन करता है, जिसमें व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। साथ ही, यह धार्मिक स्थलों की स्थिति को बनाए रखने के उद्देश्य से समय से पहले किसी भी बदलाव को प्रतिबंधित करता है।
महत्वपूर्ण मुद्दे:
विवादास्पद स्थल: 1947 से पहले वाले धार्मिक स्थलों को संरक्षित करने का प्रावधान विवादास्पद स्थलों, विशेषकर उन स्थलों के मामले में लागू होता है जिनकी धार्मिक और ऐतिहासिक विवादास्पद स्थिति रही है।
धार्मिक संप्रदायों के बीच टकराव: इस कानून ने धार्मिक संप्रदायों के बीच टकराव को रोका है, खासकर बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद जैसे मामलों में। यह सुनिश्चित करता है कि विवादित स्थलों की स्थिति स्थिर और सुरक्षित रहे।
विवाद और आलोचना:
समानता की आवश्यकता: कुछ आलोचक इस कानून को गैर-समतावादी मानते हैं, जो धर्म के नाम पर न्याय की भावना को कमजोर कर सकता है।
राजनीतिक और सांप्रदायिक समीकरण: यह कानून कई बार राजनीति और सांप्रदायिक समीकरणों में उलझा रहा है, खासकर चुनावी राजनीति में इसका उपयोग विभिन्न दलों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया गया है।
निष्कर्ष: उपासना स्थल कानून भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों की स्थिति को संरक्षित रखने का प्रयास करता है। हालांकि, इसे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों द्वारा अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है, और यह एक ऐसा मुद्दा है जो समय-समय पर बहस का विषय बना रहता है।