कंपनी ने दावा किया है कि यह अध्ययन लोगों में वैक्सीन के प्रति अविश्वास बढ़ा सकता है और इससे उनके उत्पाद की छवि खराब हुई है। जर्नल ने पहले ही यह शोध हटा लिया है, यह कहते हुए कि इसमें दिए गए आंकड़े और निष्कर्ष सही नहीं थे। इस साल जुलाई में, भारत बायोटेक ने बीएचयू के इन विज्ञानियों को मानहानि का नोटिस भेजा था, जिसमें पांच करोड़ रुपये की मांग की गई थी।
दूसरी ओर, इन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन का बचाव किया है। उन्होंने दावा किया है कि उनका शोध वैज्ञानिक आधार पर किया गया है और इसमें कोई भी तथ्य गलत या भ्रामक नहीं है। उन्होंने भारत बायोटेक के आरोपों का खंडन करते हुए अगस्त में हैदराबाद के सिविल कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया। उनका कहना है कि उन्होंने वैक्सीन के प्रभावों का विस्तृत और सही अध्ययन किया था, जिसमें 15 से 18 साल की उम्र के 635 किशोरों और 291 वयस्कों को शामिल किया गया था। यह अध्ययन एक वर्ष तक चला, जिसके दौरान प्रतिभागियों के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी एकत्र की गई।
उनके शोध में सामने आया कि 304 लोगों को सांस से जुड़ी समस्याएं थीं और किशोरियों में मासिक धर्म में अनियमितता भी देखी गई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके निष्कर्षों का आधार सटीक और विस्तृत डेटा है, जिसे लोगों से फोन के जरिए संकलित किया गया था।
भारत बायोटेक ने आरोप लगाया कि इस शोध ने उनके उत्पाद की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, जबकि उनकी वैक्सीन को कई चरणों के परीक्षण के बाद अनुमोदित किया गया था। उनका कहना है कि बीएचयू के वैज्ञानिकों ने बिना किसी ठोस सबूत के इस तरह का शोध प्रकाशित किया, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई। कंपनी ने यह भी कहा है कि उन्होंने वैक्सीन के निर्माण और बिक्री के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) को लगभग 170 करोड़ रुपये की रॉयल्टी दी थी।
हालांकि, बीएचयू के वैज्ञानिक इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए निष्कर्ष निकाले थे और भारत बायोटेक का आरोप बेबुनियाद है। उन्होंने कोर्ट में दिए गए जवाब में भारत बायोटेक के हर आरोप का विस्तार से खंडन किया है। यह मामला अब अदालत में है, और अक्टूबर के पहले सप्ताह में इसकी सुनवाई होगी।
इस शोध के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को इस तरह के परीक्षण में शामिल करने पर सवाल उठाए थे। इसके साथ ही, WHO ने कोवैक्सीन की उत्पादन प्रक्रिया में भी कुछ खामियां पाईं थीं, जिसके चलते इसकी आपूर्ति पर रोक लगाई गई थी।
भारत बायोटेक द्वारा लगाए गए आरोपों के विरोध में 600 से अधिक डॉक्टर, वैज्ञानिक, वकील और अन्य नागरिक संगठनों ने कंपनी और ICMR के खिलाफ एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि यदि इस तरह के कानूनी दबाव बनाए जाते रहेंगे, तो वैज्ञानिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है और भविष्य में किसी भी शोध में सही तथ्य सामने लाना मुश्किल हो जाएगा।
यह शोध बीएचयू के फार्माकोलॉजी और जीरियाट्रिक विभाग ने संयुक्त रूप से किया था और लोकसभा चुनाव के समय यह प्रकाशित हुआ था, जिसके बाद यह राजनीतिक मुद्दा भी बन गया था। ICMR ने इस शोध पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इसे बिना उनकी अनुमति के प्रकाशित किया गया और इसमें उनका नाम नहीं होना चाहिए था। इसके बाद, जर्नल ने शोध को हटा लिया है।
बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान (IMS) के निदेशक प्रो. एसएन संखवार ने कहा कि ICMR की आपत्ति के बाद यह शोध जर्नल से वापस ले लिया गया था और इस पर उनकी आंतरिक जांच पूरी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि कानूनी कार्यवाही की जानकारी उनके पास नहीं है, लेकिन शोध में कई खामियां पाई गईं हैं।
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