Flickr Images

साल का एक दिन ‘‘माँ’’ के लिए मुकर्रर है, जिसे मदर्स डे कहा जाता है, आप भी जानिए

एस.एस. फ़िरोज़@उड़ान इंडिया: 

‘लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक ‘‘माँ’’है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती’’

‘‘माँ’’ ये शब्द कहने भर से ही इबादत हो जाती है। ‘‘माँ’’ दुनिया के हर इंसान के लिए सबसे ख़ास सबसे प्यारा रिश्ता हैं। यूं तो ‘‘माँ’’ से प्यार जाहिर करने के लिए किसी ख़ास वक़्त की ज़रूरत नहीं होती है, लेकिन फिर भी हर साल एक दिन ‘‘माँ’’ के लिए मुकर्रर है, जिसे मदर्स डे कहा जाता है। इस बार ये दिन 9 मई को है।

क्यों और कब से शुरु हुई ये परंपरा
ऐसा माना जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मदर्स डे मनाने की शुरुआत अमेरिका से हुई थी। वो भी साल 1912 में जब एना जार्विस नाम की अमेरिकी कार्यकर्ता ने अपनी माँ के निधन के बाद इस दिन को मनाने की शुरुआत की। खास बात ये है कि पूरे विश्व में मदर्स डे की तारीख को लेकर एक राय नहीं है. भारत में इसे मई के दूसरे संडे के दिन मनाया जाता है जो इस बार 9 मई को होगा। तो वहीं बोलीविया में इसे 27 मई को मनाया जाता है। आजादी की लड़ाई में हिस्सा ले रहीं बोलीविया की महिलाओं की हत्या स्पेन की सेना ने इसी तारीख को की थी जिसके कारण वहां इसी दिन को मदर्स डे मनाया जाता है।

‘‘चलती फिरती हुई आंखों से अजां देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है ‘‘माँ’’ देखी है.’’

कुदरत ने सिर्फ औरतों को ही ये शक्ति दी है कि वो एक नए जीवन को दुनिया में ला सके। ‘‘माँ’’ एक बच्चे को जन्म देती है और जीवनभर के लिए दोनों के दिल के तार जुड़ जाते हैं। मां साए की तरह अपने बच्चे के साथ रहती है और उसकी हर छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करती है। एक मां जो त्याग करती है उसका कर्ज संतान कभी नहीं चुका सकता है।

‘‘मांग लू यह मन्नत की फिर यही जहान मिले,
फिर वही गोद मिले, फिर वही ‘‘माँ’’ मिले!!’’

“माँ नूर है, महक है, जज़्बा है, मोहब्बत है, ममता है, तोफ़हा है, और ये भी कि माँ धरती पर एक जन्नत है। जिसके आगोश में हम पलकर बड़े होते हैं। मदर्स डे पर देश की सभी “माँ’’ को ‘उड़ान इंडिया’ का सलाम। अगर पसंद आयी हमारी से ख़ास रिर्पोट तो शेयर करिये अपनी “माँ’’ को बेहिचक कह दीजिए- 

“माँ’’ तू ही इबादत है, मन्नत है मेरी,
तेरे ही क़दमों के नीचे जन्नत है मेरी।’’